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    भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र ने 8 नई ट्रॉम्बे फसल किस्में किसानों को समर्पित कीं

    Publish Date: December 11, 2024
    BARC Dedicates 8 New Trombay Crop Varieties To Farmersbarc Dedicates 8 New Trombay Crop Varieties To Farmers

    पिछले कई दशकों में, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बीएआरसी), मुंबई ने विकिरण-आधारित उत्परिवर्तन प्रजनन तकनीकों द्वारा नई फसल किस्मों को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस विधि ने जिसमें लाभकारी आनुवंशिक परिवर्तन लाने के लिए बीजों को विकिरण (जैसे गामा किरणें या इलेक्ट्रॉन किरण) के संपर्क में लाना शामिल है, बीएआरसी को जलवायु लचीली, गैर-जीएमओ, उच्च उपज वाली फसलें विकसित करने में सक्षम बनाया है जो भारत की विविध कृषि स्थितियों के लिए उपयुक्त हैं। हाल ही में, बीएआरसी ने विभिन्न राज्य विश्वविद्यालयों के सहयोग से, विभिन्न राज्यों में व्यावसायिक खेती के लिए आठ नई फसल किस्में जारी की हैं जिसमें – पाँच अनाज किस्में और तीन तिलहन किस्में शामिल हैं। डॉ. अजित कुमार मोहान्ती, सचिव, परमाणु ऊर्जा विभाग एवं अध्यक्ष परमाणु ऊर्जा आयोग ने भारत में कृषि व्यवस्था में परिवर्तन लाने, किसानों की आय बढ़ाने के लिए इसे राष्ट्रीय लक्ष्यों के अनुकूल करने, कृषि की व्यवहार्यता बढ़ाने तथा खाद्य एवं पोषण सुरक्षा को मजबूत करने में बीएआरसी की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया। इस महत्वपूर्ण उपलब्धि को मनाते हुए, श्री विवेक भसीन, भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र ने इन नई किस्मों के महत्व पर जोर दिया, इसे उन किसानों के लिए एक वरदान बताया जो इन फसलों से लाभान्वित होंगे जो कि मौजूदा विकल्पों की तुलना में जल्दी पकने वाली, रोग प्रतिरोधी, जलवायु के अनुकूल, नमक प्रतिरोधी और अधिक उपज देने वाली फसलें हैं। उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि, अपनी स्थापना के 70वें वर्ष में, बीएआरसी ने अब भारत के किसानों और लोगों को कुल 70 फसल किस्में समर्पित की हैं।

    नई फसल किस्मों का विवरण

    गेहूँ

    तेजी से बदलती जलवायु परिस्थितियों, विशेष रूप से अनाज भरने के चरण के दौरान उच्च तापमान के कारण, गेहूँ के उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। राजस्थान के लिए जोधपुर कृषि विश्वविद्यालय के सहयोग से विकसित ट्रॉम्बे जोधपुर गेहूँ-153 (TJW-153), इस क्षेत्र की एक महत्वपूर्ण आवश्यकता को पूरा करने के लिए, शुरुआती और अंतिम गर्मी के प्रभाव को सहन करने की अपनी क्षमता के लिए उल्लेखनीय है। यह किस्म उपज को बहुत कम कर देने वाली ब्लास्ट और पाउडरी फफूंदी जैसे फंगल रोगों के लिए प्रतिरोधी है जिससे राजस्थान की शुष्क परिस्थितियों में स्थिर फसल उत्पादन सुनिश्चित होता है। मध्य प्रदेश के लिए राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय, ग्वालियर द्वारा विकसित ट्रॉम्बे राज विजय गेहूँ (TRVW-155), उच्च पोषण मूल्य (जस्ता और लौह तत्व में वृद्धि), बेहतर रोटी बनाने की गुणवत्ता और फंगल रोगों जैसे कि ब्लास्ट और पाउडरी फफूँदी के लिए प्रतिरोधी भी है। संयोग से, यह पहली बार है कि बीएआरसी द्वारा गेहूँ की किस्में जारी की गई हैं।

    चावल

    हमारा देश प्राकृतिक धान की भूमि प्रजातियों की विविधता से समृद्ध है। लेकिन, दुर्भाग्य से, उनकी कम उपज और अन्य समस्याओं के कारण, इन भूमि प्रजातियों की खेती किसानों द्वारा सक्रिय रूप से नहीं की जाती है। भारत के धान के कटोरे छत्तीसगढ़ राज्य में, बीएआरसी ने लोकप्रिय, नरम-पके चावल की भूमि, ‘लुचाई’ के उत्परिवर्ती किस्म को विकसित करने में एक प्रमुख भूमिका निभाई है, जिसे ‘बौना लुचाई-सीटीएलएम’ के रूप में जारी किया गया। चावल की इस बौनी किस्म में उसके नरम-पका हुआ गुण बना रहता है, साथ ही यह हर स्थिति में टिके रहने की क्षमता भी दिखाती है (अर्थात बरसात/हवा की स्थिति में गिरती नहीं है), यह जल्दी पकती है और मूल लुचाई किस्म की तुलना में अधिक उपज देती है। इसके अलावा, पारंपरिक रूप से अपने उपचारात्मक और औषधीय गुणों के लिए जानी जाने वाली धान की प्रजाति लयचा की एक किस्म को छत्तीसगढ़ में ‘संजीवनी’ के रूप में जारी किया गया। यह भूरे रंग का संजीवनी चावल है, जिसमें 350 से अधिक विभिन्न फाइटोकेमिकल्स होते हैं, इसे प्रतिरक्षा में सुधार और एंटीऑक्सीडेंट प्रतिक्रियाओं को बढ़ाने के लिए जाना जाता है। छत्तीसगढ़ राज्य के लिए ‘बौना लुचाई-सीटीएलएम’, और ‘संजीवनी’ दोनों इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय (आईजीकेवी), रायपुर के सहयोग से जारी किए गए।

    महाराष्ट्र जैसे राज्यों में, जहां लंबी तटरेखा है, खारे पानी के प्रवेश से मिट्टी खारी हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप चावल के पौधों की वृद्धि कम हो जाती है। डॉ. बालासाहेब सावंत कोंकण कृषि विद्यापीठ, दापोली के सहयोग से तटीय लवणीय मिट्टी के लिए विकसित ट्रॉम्बे कोंकण खारा, लवणीय परिस्थितियों में 15% अधिक अनाज उपज दिखाता है, जिससे गैर-कृषि योग्य खारे मिट्टी में चावल की खेती संभव हो जाती है।

    तिलहन

    वर्तमान में, हमारी तिलहन आवश्यकता का केवल 40-45% ही हमारे घरेलू उत्पादन से पूरा होता है। तिलहन के उत्पादन में ‘आत्मनिर्भरता’ हासिल करने की दिशा में, सरकार का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य को हासिल करते हुए सरसों, तिल और मूँगफली की उच्च उपज वाली उन्नत किस्में जारी की गई हैं। मौजूदा किस्मों की तुलना में 14% उपज श्रेष्ठता वाली ‘ट्रॉम्बे जोधपुर मस्टर्ड 2 (TJM-2)’ को कृषि विश्वविद्यालय, जोधपुर के सहयोग से राजस्थान राज्य के लिए जारी किया गया था। TJM-2 में तेल की मात्रा बहुत अच्छी (40%) है और यह पाउडरी फफूंदी और सफ़ेद रस्ट जैसी फफूंद जनित बीमारियों के लिए भी प्रतिरोधी है।

    पहली बार, बीएआरसी द्वारा गामा किरण विकिरण का उपयोग करके तिल की एक किस्म विकसित की गई है। महाराष्ट्र के लिए वसंतराव नाइक मराठवाड़ा कृषि विद्यापीठ, परभणी के सहयोग से विकसित यह ट्रॉम्बे लातूर तिल-10 (TLT-10) किस्म बोल्ड बीज वाली है और मौजूदा तिल किस्मों की तुलना में इसकी बीज उपज (लगभग 20%) अधिक है।

    मूँगफली सुधार में बीएआरसी की विरासत को जारी रखते हुए, एक नया म्‍यूटेंट किस्म, ट्रॉम्बे ग्राउंडनट 88 (TG 88), आईजीकेवी, रायपुर के सहयोग से ‘छत्तीसगढ़ ट्रॉम्बे मुंगफली (CGTM)’ के रूप में जारी किया गया । CGTM में उच्च तेल सामग्री (49%) है और यह छत्तीसगढ़ राज्य में वर्षा एवं ग्रीष्म ऋतु में खेती के लिए उपयुक्त है।

    डॉ. मोहान्ती ने आगे कहा कि फसल किस्मों की यह नई सौगात कृषि विज्ञान को आगे बढ़ाने और स्थान-विशिष्ट उन्नत फसल किस्मों का उत्पादन करने के लिए राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के साथ सहयोग करने के लिए परमाणु ऊर्जा विभाग की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

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